राजस्थान संत संप्रदाय
राजस्थान को संतो की भूमि कहा गया है। यहां पर अनेक संत अवतरित हुए हैं। जिन्होंने राजस्थान को एक अलग ही पहचान दिए। नीचे हम संत और उनके संप्रदायके बारे में उनके बारे में पढ़ेंगे।
1. जसनाथी सम्प्रदाय
- संस्थापक – जसनाथ जी जाट
- जन्म – कतरियासर (बीकानेर) (1482 ई.)
- पिता – हम्मीर जी जाट
- माता – रूपादे
- शिक्षा जी – गोरख आश्रम से
- गुरू – गोरखनाथ जी
- तपस्या की – गोरखमालिया (बीकानेर)
- प्रधान पीठ – कतरियासर (बीकानेर) में है।
- नियम – 36
- पवित्र ग्रन्थ – सिमूदड़ा और कोडाग्रन्थ
- नृत्य – अग्नी नृत्य
- अग्नी नृत्य करते समय उच्चारण – फतै: – फतै:
- मैला – आश्विन शुक्ल 7
- औरंगजेब को पर्चा दिया – रूसतम जी ने
- इस सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार ” परमहंस मण्डली” द्वारा किया जाता है।
- दिल्ली के सुलतान सिकंदर लोदी न जसनाथ जी को प्रधान पीठ स्थापित करने के लिए भूमि दान में दी थी।
- इस सम्प्रदाय की पांच उप-पीठे है।
1. बमलू (बीकानेर)
2. लिखमादेसर (बीकानेर)
3. पूनरासर (बीकानेर)
4. मालासर (बीकानेर)
5. पांचला (नागौर)
2. दादू सम्प्रदाय
- संस्थापक – दादू दयाल जी
- जन्म – साबरमती नदी, अहमदाबाद (गुजरात) (1544 ई.)
- पिता – लोदीराम जी
- अवतार – कबीर के
- उपनाम – कबीरपंथी सम्प्रदाय
- गुरू – वृद्धानंद जी / बूढान जी (कबीर वास जी के शिष्य)
- ग्रन्थ -दादू वाणी, दादू जी रा दोहा
- ग्रन्थ की भाषा – सधुकड़ी (ढुढाडी व हिन्दी का मिश्रण)
- प्रधान पीठ – नरेना/नारायण (जयपुर)
- तपस्या की – भैराणा की पहाडियां (जयपुर) में
- समकालिन शासक – दिल्ली के अकबर और जयपुर के मानसिंह
- दादू जी के 52 शिष्य थे, जो 52 स्तम्भ कहलाते है।
प्रमुख शिष्य – 1. गरीबदास जी 2. रज्जब जी 3. सुन्दर दास जी - 52 शिष्यों में इनके दो पुत्र गरीब दास जी व मिस्किन दास जी भी थे।
- शाखांए
- खालसा
- विरक्त
- उत्तराधि
- नागा
- खाकी
- स्थानधारी
- खालसा – ऐसे साधु जो प्रधानपीठ पर निवास करते है।
- विरक्त – जो राज्य में धूम-2 कर प्रचार-प्रसार करते है।
- उत्तराधे – जो उत्तर भारत में इस सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार करते है।
- नागा – वे साधु जो निर्वस्त्र रहते है तथा शरीर पर भरम लगाए रखते है।
- दादू पंथ के अन्तर्गत नागा शाखा का प्रारम्भ दादू जी के शिष्य सुन्दर जी ने किया ।
- इस सम्प्रदाय में मृतक व्यक्ति का अन्तिम संस्कार विशेष प्रकार से किया जाता है। जिसके अन्तर्गत उसे न तो जलाया जाता है और नाही दफनाया जाता है। बल्कि उसे जंगल में जानवरों के खाने के लिए खुला छोड़ दिया जाता है।
- सतसंग स्थल – अलख-दरीबा
- गुफा – दादू खोळ
- निधन – भैरान पहाड़ी (नरैना गांव, जयपुर)
रज्जब जी-
- जन्म व प्रधानपीठ – सांगानेर (जयपुर)
- यह दादूजी के शिष्य थे।
- रज्जब जी आजीवन दूल्हे के वेश में रहे।
- रचनाऐं- रज्जव वाणी, सर्वगी
- दादू जी के द्वारा रज्जब जी को कहे गये वचन
“ रज्जब तैं गज्जब किया, सर पर बाधां मौर।
आया था तु हरी भजन को, करे परक का ठौर।। “
सुन्दर दास जी
- जन्म – दौसा
- गुरू – संत दादुजी
- अन्य नाम – दुसरा शंकराचार्य
- ग्रंथ –
- सुन्दरसार
- सुन्दर ग्रंथावली
- सुन्दर विलास
- ज्ञान समुन्दर
3. विश्नोई सम्प्रदाय
- सस्थापक -जाम्भोजी
- जन्म – पीपासर (नागौर)
- कब – कृष्ण जन्माष्टमी (1451 ई.)
लोक देवता मांगलिया मेहा जी का जन्म भी कृष्ण जन्माष्टमी को हुआ था। - वंशज – पंवार वंशीय राजपूत
- प्रमुख ग्रन्थ – जम्भ सागर, जम्भवाणी, विश्नोई धर्म प्रकाश
- पिता – लौहट जी
- माता – हंसा देवी
- मुल नाम – धनराज
- अवतार – भगवान विष्णु
- कार्य स्थल – समराथल धोरा (बीकानेर)
- नियम – 29 नियम
- इस सम्प्रदाय के लोग विष्णु भक्ति पर बल देते है।
- यह सम्प्रदाय वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा में अग्रणी है।
- उपदेश स्थल – सांथर
- मंत्रीत जल – पाहल
- मैला – फाल्गुन व आश्विन अमावस्या
- मृत्यु – मुकाम-तालवा (नोखा, बीकानेर)
- प्रमुख स्थल
- मुकाम – मुकाम- नौखा तहसील बीकानेर में है। यह स्थल जाम्भों जी का समाधि स्थल है।
- लालासर – लालासर (बीकानेर) में जाम्भोजी को निर्वाण की प्राप्ति हुई।
- रामडावास – रामडावास (जोधपुर) में जाम्भों जी ने अपने शिष्यों को उपदेश दिए।
- जाम्भोलाव – जाम्भोलाव (जोधपुर), पुष्कर (अजमेर) के समान एक पवित्र तालाब है, जिसका निर्माण जैसलमेर के शासक जैत्रसिंह ने करवाया था।
- जांगलू (बीकानेर) – रोटू गांव (नागौर) विश्नोई सम्प्रदाय के प्रमुख गांव है।
- समराथल – 1485 ई. में जाम्भो ने बीकानेर के समराथल धोरा (धोक धोरा) नामक स्थान पर विश्नोई सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया।
- जाम्भों जी को पर्यावरण वैज्ञानिक /पर्यावरण संत भी कहते है।
- जाम्भों जी ने जिन स्थानों पर उपदेश दिए वो स्थान सांथरी कहलाये।
4. लाल दासी सम्प्रदाय
- संस्थापक -लाल दास जी।
- जन्म – धोली धूव गांव (अलवर)
- ज्ञान की प्राप्ति – तिजारा (अलवर)
- प्रधान पीठ – नगला जहाज (भरतपुर) में है।
- मेवात क्षेत्र का लोकप्रिय सम्प्रदाय है।
- समाधि -शेरपुरा (अलवर)
5. चरणदासी सम्प्रदाय
- संस्थापक -चारणदास जी
- जन्म – डेहरा गांव (अलवर)
- वास्तविक नाम- रणजीत सिंह डाकू
- पिता – मुरलीधर
- माता – कुंजोदेवी
- गुरू – सुखदूव मुनी
- प्रधान पीठ – दिल्ली (राज्य में पीठ नहीं है)
- नियम – 42
- वस्त्र – पीले
- चरणदास जी ने भारत पर नादिर शाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।
- मेवात क्षेत्र में लोकप्रिय सम्प्रदाय ळै।
- ग्रंथ –
- भक्ति सागर
- ब्रह्म सागर
- ब्रह्म सागर
- ज्ञान स्वरोदय
- इनकी दो शिष्याऐं दयाबाई व सहजोबाई थी।
- दया बाई की रचनाऐं – “विनय मलिका” व “दयाबोध”
- सहजोबाई की रचना – “सहज प्रकाश”
- इन्होने भारत में नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।
6. प्राणनाथी सम्प्रदाय
- जन्म – जाम्भनगर
- प्रमुख पीठ – पन्ना (M.P)
- ग्रंथ – कुजलम् स्वरूपम्
7. वैष्णव धर्म सम्प्रदाय
- इसकी चार शाखाऐं है।
- वल्लभ सम्प्रदाय/पुष्ठी मार्ग सम्प्रदाय
- निम्बार्क सम्प्रदाय /हंस सम्प्रदाय
- रामानुज सम्प्रदाय/रामावत/रामानंदी सम्प्रदाय
- गौड़ सम्प्रदाय/ब्रह्मा सम्प्रदाय
वल्लभ सम्प्रदाय /पुष्ठी मार्ग सम्प्रदाय
- संस्थापक -आचार्य वल्लभ जी
- अष्ट छाप मण्डली – यह मण्डली वल्लभ जी के पुत्र विठ्ठल नाथ जी ने स्थापित की थी, जो इस सम्प्रदाय के प्रचार-प्रसार का कार्य करती थी।
- प्रधान पीठः- श्री नाथ मंदिर (नाथद्वारा-राजसमंद)
- नाथद्वारा का प्राचीन नाम “सिहाड़” था।
- 1669 ई. में मुगल सम्राट औरंगजेब ने हिन्दू मंदिरों तथा मूर्तियों को तोडने का आदेश जारी किया । फलस्वरूप वृंदावन से श्री नाथ जी की मूर्ति को मेवाड़ लाया गया । यहां के शासक राजसिंह न 1672 ई. में नाथद्वारा में श्री नाथ जी की मूर्ति को स्थापित करवाया।
- यह बनास नदी के किनारे स्थित है।
- वल्लभ सम्प्रदाय दिन में आठ बार कृष्ण जी की पूजा- अर्चना करता है।
- वल्लभ सम्प्रदाय श्री कृष्ण के बालरूप की पूजा-अर्चना करता है।
- किशनगढ़ के शासक सांवत सिंह राठौड इसी सम्प्रदाय से जुडे हुए थे।
- इस सम्प्रदाय की 7 अतिरिक्त पीठें कार्यरत है।
- बिठ्ठल नाथ जी -नाथद्वारा (राजसमंद)
- द्वारिकाधीश जी – कांकरोली (राजसमंद)
- गोकुल चन्द्र जी – कामा (भरतपुर)
- मदन मोहन जी – मामा (भरतपुर)
- मथुरेश जी – कोटा
- बालकृष्ण जी – सूरत (गुजरात)
- गोकुल नाथ जी – गोकुल (उत्तर -प्रदेश)
- मूल मंत्र – श्री कृष्णम् शरणम् मम्।
- दर्शन – शुद्धाद्वैत
- पिछवाई कला का विकास वल्लभ सम्प्रदाय के द्वारा
निम्बार्क सम्प्रदाय/हंस सम्प्रदाय
- संस्थापक – आचार्य निम्बार्क
- राज्य में प्रमुख पीठ:- सलेमाबाद (अजमेर) है।
- राज्य की इस पीठ की स्थापना 17 वीं शताब्दी में पुशराम देवता ने की थी, इसलिए इसको “परशुरामपुरी” भी कहा जाता है।
- सलेमाबाद (अजमेर में) रूपनगढ़ नदी के किनारे स्थित है।
- परशुराम जी का ग्रन्थ – परशुराम सागर ग्रन्थ।
- निम्बार्क सम्प्रदाय कृष्ण-राधा के युगल रूप की पूजा-अर्चना करता है।
- दर्शन – द्वैता द्वैत
रामानुज/रामावत/रामानंदी सम्प्रदाय
- संस्थापक -आचार्य रामानुज
- रामानुज सम्प्रदाय की शुरूआत दक्षिण भारत के आन्ध्रप्रदेश राज्य के अन्तर्गत आचार्य रामानुज द्वारा की गई।
- उत्तर भारत में इस सम्प्रदाय की शुरूआत रामानुज के परम शिष्य रामानंद जी द्वारा की गई और यह सम्प्रदाय, रामानंदी सम्प्रदाय कहलाया।
- कबीर जी, रैदास जी, संत धन्ना, संत पीपा आदि रामानंद जी के शिष्य रहे है।
- राज्य में रामानंदी सम्प्रदाय के संस्थापक कृष्णदास जी वयहारी को माना जाता है।
- “कृष्णदास जी पयहारी” ने गलता (जयपुर) में रामानंदी सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ स्थापित की। “कृष्णदास जी पयहारी” के ही शिष्य “अग्रदास जी” ने रेवासा ग्राम (सीकार) में अलग पीठ स्थापित की तथा “रसिक” सम्प्रदाय के नाम से अलग और नए सम्प्रदाय की शुरूआत की।
- राजानुज/रामावत/रामानदी सम्प्रदाय राम और सीता के युगल रूप की पूजा करता है।
- दर्शन:- विशिष्टा द्वैत
- सवाई जयसिंह के समय रामानुज सम्प्रदाय का जयपुर रियासत में सर्वाधिक विकास हुआ।
- रामारासा नामक ग्रंथ भट्टकला निधि द्वारा रचित यह ग्रन्थ सवाई जयसिंह के काल में लिखा था।
गौड़ सम्प्रदाय/ब्रहा्र सम्प्रदाय
- संस्थापक -माध्वाचार्य
- भारत में इस सम्प्रदाय का प्रचार-प्रसार मुगल सम्राट अकबर के काल में हुआ।
- राज्य में इस सम्प्रदाय का सर्वाधिक प्रचार जयपुर के शासक मानसिंह -प्रथम के काल में हुआ।
- मानसिंह -प्रथम ने वृन्दावन में इस सम्प्रदाय का गोविन्द देव जी का मंदिर निर्मित करवाया
- प्रधान पीठ:- गोविन्द देव जी मंदिर जयपुर में है।
- इस मंदिर का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया।
- करौली का मदनमोहन जी का मंदिर भी इसी सम्प्रदाय का है।
- दर्शन – द्वैतवाद
8. शैवमत सम्प्रदाय
- इसकी चार श्शाखाऐं है।
- कापालिक
- पाशुपत
- लिंगायत
- काश्मीरक
1. कापालिक
- कापालिक सम्प्रदाय भैख की पूजा भगवान शिव के अवतार के रूप में करता है।
- इस सम्प्रदाय के साधु तानित्रक विद्या का प्रयोग करते है।
- कापालिक साधु श्मसान भूमि में निवास करते हैं।
- कापालिक साधुओं को अघोरी बाबा भी कहा जाता है।
2. पाशुपत
- प्रवर्तक:- लकुलिश (मेवाड़ से जुडे हुए थे)
- यह सम्प्रदाय दिन में अनेक बार भगवान शिव की पूजा -अर्जना करता है।
3. लिंगायत सम्प्रदाय-
दक्षिण भारत में (कर्नाटक) भी शैव धर्म का विस्तार हुआ। इस धर्म के उपासक दक्षिण में लिंगायत या जंगम कहे जाते थे। बसव पुराण में इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक अल्लभप्रभु एवं उनके शिष्य बसव का उल्लेख मिलता है।
4. कश्मीरीसम्प्रदाय
कश्मीरी शैव सम्प्रदाय का गठन ‘वसुगुप्त’ ने 9वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में किया था। इनके ‘कल्लट’ और ‘सोमानन्द’ नाम के दो प्रसिद्ध शिष्य थे। इनका दार्शनिक मत ‘ईश्वराद्वयवाद’ था। सोमानन्द ने ‘प्रत्यभिज्ञा मत’ का प्रतिपादन किया था।
9.नाथ सम्प्रदाय
- यह शैवमत की ही एक शाखा है जिसका संस्थापक – नाथ मुनी को माना जाता है।
- प्रमुख साधु:- गोरख नाथ, गोपीचन्द्र, मत्स्येन्द्र नाथ, आयस देव नाथ, चिडिया नाथ, जालन्धर नाथ आदि।
- जोधपुर के शासक मानसिंह नाथ सम्प्रदाय से प्रभावित थे।
- मानसिंह ने नाथ सम्प्रदाय के राधु आयस देव नाथ को अपना गुरू माना और जोधपुर में इस सम्प्रदाय का मुख्य मंदिर महामंदिर स्थापित करवाया।
- नाथ सम्प्रदाय की दो शाखाऐं थी।
- राताडूंगा (पुष्कर) मे – वैराग पंथी
- महामंदिर (जोधपुर) में – मानपंथी
10. रामस्नेही सम्प्रदाय
- यह वैष्णव मत की निर्गणु भक्ति उपासक विचारधारा का मत रखने वाली शाखा है।
- इस सम्प्रदाय की स्थापना रामानंद जी के ही शिष्यों ने राजस्थान में अलग-अलग क्षेत्रों में क्षेत्रिय शाखाओं द्वारा की।
- इस सम्प्रदाय के साधु गुलाबी वस्त्र धारण करते है तथा दाडी-मूंछ नही रखते है।
- प्रधान पीठ:-शाहपुरा (भीलवाडा)
- प्राचीन पीठ- बांसवाडा
- इस सम्प्रदाय की चार शाखाऐं है।
क्र.सं. | सम्प्रदाय की शाखा | संस्थापक | काव्यसंग्रह |
1. | शाहपुरा (भीलवाडा) | रामचरणदास जी | अनभैवाणी |
2. | रैण (नागौर) | दरियाव जी | – |
3. | सिंहथल (बीकानेर) | हरिराम दास जी | रचना निसानी |
4. | खैडापा (जोधपुर) | रामदास जी | – |
राजस्थान के संत सम्प्रदाय
रामचरण दास जी
- जन्म – सोडाग्राम (टोंक)
- बचपन का नाम – रामाकिशन
- गुरू – कृपाराम
- ग्रंथ – अणर्थ वाणी
- स्थापना – रामस्नेही सम्प्रदाय
- होली के दुसरे दिन शाहपुरा, भीलवाड़ा में “फुलडोल महात्सव” मनाया जाता है।
- डोला मेला / डोल महोत्सव बाराँ में भरता है।
दरियाव जी
- जन्म – जैतारण
- पिता – मानजी धुनिया
- माता – गिगण
- गुरू – प्रेम नाथ जी / बालक नाथ जी
- इन्होंने “राम” शब्द में “रा” का अर्थ “राम” तथा “म” का अर्थ “महोम्मद” को बताया था। इन्होंने “हिन्दु-मुस्लिम”एकता को बढ़ावा दिया।
संत हरिरामदास जी
- जन्म – सिंहथल (बीकानेर)
- पिता – भागचंद जी
- माता – रामी
- गुरू – जयमल दास जी
- रचना – निसानी
- सैनाणी नामक ग्रंथ के रचयता – मेघराज मुकुल
संत रामदास जी
- जन्म – भीकमपुरा गांव (जोधपुर)
- पिता – सार्दुल जी मेघवाल
- माता – श्रीमती अणमी देवी
- गुरू – संत हरिरामदास जी
संत किशनदास महाराज रामद्वारा मंदिर
संत किसनदासजी दरियावजी साहब के चार प्रमुख शिष्यों में से एक हैं।
- इनका जन्म वि.सं. 1746 माघ शुक्ला 5 को हुआ। राजस्थान के नागौर में बने संत किशनदास महाराज रामद्वारा मंदिर में उसी बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है, जिससे गुजरात और दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर बने हैं।
- 2011 में इसका निर्माण शुरू हुआ था। 200 कारीगरों ने इसे 8 साल में बनाकर तैयार किया है।
- 20 करोड़ की लागत आई। मंदिर 52 फीट ऊंचा है और पूरी इमारत 88 खंभों पर टिकी है। रामद्वारा में लगे पत्थरों को जोड़ने में सीमेंट की बजाय सीसा और तांबे का इस्तेमाल किया गया है।
- मंदिर100 फीट लंबा, 50 फीट चौड़ा और 50 फीट ऊंचा है। इसके निर्माण में 10 क्विंटल तांबा और सीसा लगाया गया है। दरवाजों में पीतल की कीलें लगाई गई हैं।
- नागौर से करीब 30 किमी दूर स्थित टांकला गांव में यह रामद्वारा मंदिर बारीक घड़ाई और नक्काशी के लिए भी जाना जाता है।
- मंदिर ट्रस्ट का दावा है कि इस तरह की बारीक घड़ाई और बेजोड़ नक्काशी प्रदेश में किसी भी दूसरे मंदिर में नहीं।
- रामद्वारा में दरवाजों व खिड़कियों में लोहे की एक कील का भी उपयोग नहीं किया जा रहा है। दरवाजों में तांबे व पीतल की कीलों का उपयोग किया जा रहा है।
11. राजा राम सम्प्रदाय
- संस्थापक – राजाराम जी
- प्रधान पीठ – शिकारपुरा (जोधपुर)
- यह सम्प्रदाय मारवाड़ क्षेत्र में लोकप्रिय है।
- संत राजा राम जी पर्यावरण प्रेमी व्यक्ति थे।
- इन्होंने वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
12. नवल सम्प्रदाय
- संस्थापक -नवल दास जी
- जन्म – हरसोलाव (नागौर)
- प्रधान पीठ – जोधपुर
- ग्रंथ – नवलेश्वर अनुभव वाणी
- जोधपुर व नागौर क्षेत्र में लोकप्रिय है।
13. अलखिया सम्प्रदाय
- संस्थापक -स्वामी लाल गिरी
- प्रधान पीठ – बीकानेर
- क्षेत्र -चुरू व बीकानेर
- पवित्र ग्रन्थ:- अलख स्तुति प्रकाश
14. निरजंनी सम्प्रदाय
- संस्थापक – संत हरिदास जी (डकैत)
- जन्म – कापडौद (नागौर)
- मूल नाम – हरिसिंह साँखला
- अन्य नाम – कलयुग का वाल्मीकि
- प्रधान पीठ – गाढा (नागौर)
- ग्रंथ –
- मंत्रराज प्रकाश
- हरि पुरूषजी री वाणी
- दो शाखाऐं है –
- निहंग
- घरबारी
- मृत्यु – गाढ़ा (डीडवाना)
15. निष्कंलक सम्प्रदाय
- संस्थापक – संत माव जी
- जन्म – साबला ग्राम – आसपुर तहसील (डूंगरपुर)
- माव जी को ज्ञान की प्राप्ति बेणेश्वर धाम (डूंगरपुर) में हुई
- मावजी का ग्रन्थ/ उपदेश चैपडा कहलाता है। यह बागड़ी भाषा गया है।
- माव जी बागड़ क्षेत्र में लोकप्रिय है। इन्होंने भीलों को आध्यात्मिक
16. मीरा दासी सम्प्रदाय
- संस्थापक – मीरा बाई
- मीरा बाई को राजस्थान की राधा कहते है।
- जन्म कुडकी ग्राम (नागौर) में हुआ।
- पिता- रत्न सिंह राठौड़
- दादा -रावदूदा
- परदादा -राव जोधा
- राणा सांगा के बडे़ पुत्र भोजराज से मीरा बाई का विवाह हुआ और 7 वर्ष बाद उनके पति की मृत्यु हो गई।
- पति की मृत्यु के पश्चात् मीराबाई ने श्री कृष्ण को अपना पति मानकर दासभाव से पूजा-अर्जना की।
- मीरा बाई ने अपना अन्तिम समय गुजरात के राणछौड़ राय मंदिर में व्यतीत किया और यहीं श्री कृष्ण जी की मूर्ति में विलीन हो गई।
- प्रधान पीठ- मेड़ता सिटी (नागौर)
- मीरा बाई के दादा रावदूदा ने मीरा के लिए मेड़ता सिटी में चार भुजा नाथ मंदिर (मीरा बाई का मंदिर) का निर्माण किया।
- मंदिर – मेडता सिटी, चित्तौड़ गढ़ दुर्ग में।
- मीरा बाई की रचनाऐं
1. मीरा पदावलिया (मीरा बाई द्वारा रचित) - नरसी जी रो मायरो (मीरा बाई के निर्देशन में रतना खाती द्वारा रचित)
- डाॅ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार मीरा बाई का जन्म कुडकी ग्राम में हुआ जो वर्तमान में जैतरण तहसील (पाली) में स्थित है।
- कुछ इतिहासकार मीरा बाई का जन्म बिजौली ग्राम (नागौर) में मानते है। उनके अुनसार मीर बाई का बचपन कुडकी ग्राम में बीता।
17. संत धन्ना
- जन्म – धुंवल गांव (टोंक) में जाट परिवार में हुआ।
- संत धन्ना रामानंद जी के शिष्य थे।
18. संत पीपा
- जन्म – गागरोनगढ़ (झालावाड़) में हुआ।
- पिता का नाम – कडावाराव खिंची।
- बचपन का नाम – प्रताप था।
- पीपा क्षत्रिय दरजी सम्प्रदाय के लोकप्रिय संत थे।
- मंदिर -समदडी (बाडमेर)
- गुफा – टोडाराय (टोंक)
- समाधि – गागरोनगढ़ (झालावाड़)
- राजस्थान में भक्ति आन्दोलन का प्रारम्भ कत्र्ता संत पीपा को माना जाता है।
19. संत रैदास
- मीरा बाई के गुरू थे।
- रामानंद जी के शिष्य थे।
- मेघवाल जाति के थे।
- इनकी छत्तरी चित्तौड़गढ दुर्ग में स्थित है।
20. गवरी बाई
- गवरी बाई को बागड़ की मीरा कहते है।
- डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने डूंगरपुर में गवरी बाई का मंदिर बनवायया जिसका नाम बाल मुकुन्द मंदिर रखा।
- गवरी बाई बागड़ क्षेत्र में श्री कृष्ण की अनन्य भक्तिनी थी।
21. भक्त कवि दुर्लभ
- ये कृष्ण भक्त थे।
- इन्हे राजस्थान का नृसिंह कहते है।
- ये बागड़ क्षेत्र के प्रमुख संत है। यह इनका कार्य क्षेत्र रहा है।
22. संत खेता राज जी
- संत खेता राम जी ने बाड़मेंर में आसोतरा नामक स्थान पर ब्रहा्रा जी का मंदिर निर्मित करवाया।
23. गुदड़ सम्प्रदास
- संस्थापक – संत दास जी
- प्रमुख पीठ – दांतड़ (भीलवाड़ा)
- संत दास जी गुदड़ सं बने बस्त्र पहनते थे।
24. संत धनाजी
- जन्म – धुवन गांव (टोंक)
- गुरू – रामानंद
- राजस्थान में धार्मिक आंदोलन की शुरूआत करने का श्रेय दिया जाता है।
- सिखों के 5 वें गुरू अर्जुनदेव ने अपने ग्रंथ “गुरू ग्रंथ साहेब” में इनकी भक्ति का उल्लेख किया था।
25. संत माहोजी
- जन्म – धोलीदूव गांव
- पिता – चांदमल
- माता – संमदा
- गुरू – गद्दन चिश्ची
- सम्प्रदाय – लालदासी सम्प्रदाय
- प्रमुख पीठ – धोलीदूव गांव (अलवर)
- अनुयायी – मेव जाति के लोग
- मृत्यु – नगला गाँव (भरतपुर)
- समाधि – शेरपुर गाँव(अलवर)
- यह स्वयं मेवजाति के लकड़हारे थे, इन्होंने हिन्दु-मुस्लिम एकता पर जोर दिया।
26. संत लालगिरी जी
- जन्म – चुरू
- सम्प्रदाय – अलाखियां सम्प्रदाय
- प्रमुख पीठ – बीकानेर
- ग्रंथ – अलख स्तुति प्रकाश
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