राजस्थान के पंच पीर
मारवाड़ के पंच पीर (राजस्थान के पंच पीर)
पाबु , हड़बु , रामदेव, मांगलिया मेहा।
पांचों पीर पधारज्यों , गाेगाजी गेहा।।
बाबा रामदेव जी (राजस्थान के पंच पीर)
- जन्म- उपडुकासमेर, शिव तहसील (बाड़मेर)
- कब – भाद्र शुक्ल 2 , संवत् 1462 ( 1405 ई. )
- वंश – तवंर वंशीय राजपूत
- गुरू का नाम – बालनाथ / बालीनाथ जी
- पिता का नाम – अजमल जी
- माता का नाम – मैणादे
- भाई का नाम – वीरमदेव ( बलराम का अवतार )
- मौसेरा भाई का नाम – हड़बु जी
- बहिन का नाम – लाछा बाई , सुगना बाई
- मुंहबोली बहिन का नाम – डाली बाई
- घोेड़ी का नाम – लीला ( सफेद रंग का घोड़ा )
- विवाह हुआ – अमरकोट (पाकिस्तान)
- पत्नी का नाम – नेतलदे (अमरकोट के शासक दलेत सिंह सोढा की पुत्री )
- नगर बसाया – रूणेचा / रामदेवरा ( जैसलमेर)
- तालाब बनवाया – रामसरोवर
- वध किया – भैरव राक्षस का
- शिष्य – हरजी भाटी
- शिष्या – आई माता
- ग्रंथ लिखे – ” चैबीस बाणिया” (एकमात्र लोक देवता जो कवि भी थे। )
- पंथ चलाया – कामड़िया / कामड़
- समाधि ली – भाद्र शुक्ल 10 , संवत् 1515 ( 1458 ई. )
मंदिर - मुख्य मंदिर – रामदेवरा (रूणेचा), पोकरण तहसील (जैसलमेर)
- निर्माता – गंगासिंह ( बीकानेर का शासक)
- प्रतीक चिह्न – पगल्या
- मैला – भाद्र शुक्ल 2 से 10 तक (भाद्रशुक्ल द्वितीया को बाबेरी बीज कहते है।)
- मेगवाल भगत – रिखिया
- रूणेचा जाने वाले यात्री – ‘जातरू’
- पंच रंग की ध्वजा – नैजा
- रात्री जागरण – जम्मा
- जातिगत छुआछूत व भेदभाव को मिटाने के लिए रामदेव जी ने “जम्मा जागरण ” अभियान चलाया।
- रामदेव जी की फड़ – बांचने वाले – कामड़ जाति के भोपे , वाद्य यंत्र – रावण हत्था
- इनके लोकगाथा गीत ब्यावले कहलाते हैं।
- लोक देवताओं में सबसे लम्बा गीत – रामदेव जी का
- लोक देवी-देवताओं में सबसे लम्बा गीत – जीण माता का
तेरहतरली नृत्य - उद्गम स्थल – पादरला गाँव (पाली)
- प्रमुख वाद्य यंत्र – मंजीरा
- प्रमुख नृत्यागना – मांगी बाई (उदयपुर)
- किस प्रकार का नृत्य – व्यवसायिक नृत्य ( बैठकर किया जाता है )
- कौन करता – कामड़ जाति की महिलाएं
- पुरुषों द्वारा बजाये जाने वाला वाद्य यंत्र – चौतारा / वैणा
- मांगी बाईतेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध है।
- तेरहताली नृत्य कामड़ सम्प्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
- रामदेव जी श्री कृष्ण के अवतार माने जाते है।
- रामदेव जी हिन्दू तथा मुसलमान दोनों में ही समान रूप से लोकप्रिय है।
- मुस्लिम इन्हे रामसापीर के नाम से पुकारते है।
- इन्हे पीरों का पीर कहा जाता है।
- मारवाड़ का कुम्भ – रूणेचा मैला
अन्य रामदेव जी के मंदिर - छोटा रामदेवरा – जुनागढ़ ( गुजरात)
- अधरशिला रामदेव मंदिर – जोधपुर
- मसुरिया रामदेव मंदिर – जोधपुर
- बिरोठियां रामदेव मंदिर – अजमेर
- सुरताखेड़ा रामदेव मंदिर – चितौड़गढ़
गोगा जी (राजस्थान के पंच पीर)
- जन्म स्थान – ददरेवा (जेवरग्राम) राजगढ़ तहसील (चुरू)
- इनका वंश – चैहान वंश
- गुरू का नाम – गोरखनाथ जी
- पिता का नाम – जेवर जी
- माता का नाम – बाछलदे
- घाेड़ी – नीली
- पत्नी का नाम – केमल दे ( कोलुमण्ड गाँव , फलौदी के बूढ़ोजी की पुत्री )
- मौसेरे भाई – अर्जन एवं सर्जन
- युद्ध किया – महमूद गजनवी ( गाै रक्षा हेतु )
महमूद गजनवी ने गोगाजी को जाहरपीर के नाम पुकारा था। - समाधि – गोगामेड़ी, नोहर तहसील (हनुमानगढ)
- उपनाम –
सांपों के देवता,
जाहरपीर (यह नाम महमूद गजनवी ने दिया),
गाै रक्षक देवता
मंदिर - मुख्य मंदिर – गोगामेडी, नोहर ( हनुमानगढ़)
- पुजारी – हिन्दु और मुस्लिम दोनों
- (मुस्लिम पुजारी-चायल)
- भोग – खीर-लापसी और चुरमा का
- निर्माता – फिरोज़ शाह तुगलक
- पुनः निर्माण (वर्तमान स्वरूप) – महाराजा गंगा सिंह
- आकृति – मकबरेनुमा
- धुरमेडी के मुख्य द्वार पर अंकित शब्द – “बिस्मिल्लाह”
- थान – खेजड़ी वृक्ष के नीचे
- मेला – भाद्र कृष्ण नवमी (गोगा नवमी)
- (इस मेले के साथ-साथ राज्य स्तरीय पशु मेला भी आयोजित होता है।)
- (यह पशु मेला राज्य का सबसे लम्बी अवधि तक चलने वाला पशु मेला है।)
- (हरियाणवी नस्ल का व्यापार होता है।)
- गोगाजी की ओल्डी – किलकारियों की ढाणी, सांचैर (जालौर)
- गोगाजी हिन्दू तथा मुसलमान दोनों धर्मो में समान रूप से लोकप्रिय थे।
- गोगाजी के लोकगाथा गीतों में डेरू नामक वाद्य यंत्र बजाया जाता है।
- गोगाराखड़ी – राजस्थान में किसानों द्वारा हल जोतने से पुर्व हल व हाली को गोगाजी के नाम का धागा बांधा जाता है, जिसे गोगाराखड़ी कहते है।
पाबूजी (राजस्थान के पंच पीर)
- जन्म – 13 वी शताब्दी (1239 ई)
- कहाँ – कोलुमण्ड गाँव / कोलु ग्राम (फलौदी , जाेधपुर)
- वंश – राठौड़ वंश
- वंशज – राठौड़ों के मूल पुरुष राव सीहा के
- पिता का नाम – धांधल जी
- माता का नाम – कमलादे
- बहिनोई का नाम – जिंदराव खिची
- घोड़ी का नाम – केसर कालमी
- (पाबुजी को केसर कालमी घोड़ी देवल चारणी ने उपहार स्वरुप दी।)
- विवाह – अमरकोट (पाकिस्तान)
- पत्नी का नाम – सुप्यारदे
- (अमरकोट के शासक सुरजमल सोढा की पुत्री )
- युद्ध किया – जिंदराव खिची
- युद्ध के सहयोगी – चादां , डेमा , हरमल
- मृत्यु – देचु गाँव (फलौदी , जाेधपुर)
मंदिर - मुख्य मंदिर – कोलुमण्ड गाँव / कोलु ग्राम (फलौदी , जाेधपुर)
- प्रतिक चिह्न – भाला लिए हुए अश्वरोही
- मेला – चैत्र अमावस्या
- ईष्ठ देव – राईका / रेबारी
- मेले का आकर्षण –
1. पाबुजी के पवाड़े – माठा / माठ वाद्य यंत्र के साथ
2. पाबुजी की फड़ –
बांचने वाले – नायक जाति के भाेपे ,
वाद्य यंत्र – रावण हत्था - उपनाम – ऊंटों के देवता, प्लेग रक्षक देवता, राइका/रेबारी जाति के देवता, गौ रक्षक देवता
- राइका /रेबारी जाति का संबंध मुख्यतः सिरोही से है।
- मारवाड़ क्षेत्र में सर्वप्रथम ऊंट लाने का श्रेय पाबुजी को है।
- पाबूजी की फड़ राज्य की सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ है।
- पाबूजी की जीवनी “पाबु प्रकाश” आंशिया मोड़ जी द्वारा रचित है।
हरबु जी (राजस्थान के पंच पीर)
- जन्म स्थान- भूण्डोल/भूण्डेल (नागौर)
- गुरू का नाम – बालीनाथ जी
- मौसेरा भाई – रामदेव जी
- वंश – सांखला राजपूत
- सांखला राजपूतों के अराध्य देव है।
मंदिर - मुख्य मंदिर – बेंगटी ग्राम (जोधपुर)
- पुजा करते – हड़बु जी के छकड़ी की
- हड़बु जी ने अपना आशीर्वाद व तलवार राव जोधा को दी और उसी तलवार से उसने पुन: जोधपुर रियासत जीत ली।
- राव जोधा द्वारा हड़बु जी को दी गई जागीर – बैंगटी ( फलौदी , जोधपुर )
- हरभू जी शकुन शास्त्र व ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता थे।
मेहा जी मांगलियों (राजस्थान के पंच पीर)
- जन्म – बापणी गाँव ( फलौदी , जोधपुर )
- कब – कृष्णजन्माष्टमी ( भाद्र कृष्ण 8)
- समकालीन शासक – राव चुड़ा ( मारवाड़ का शासक )
- ईष्ट देव – मांगलियों के
- मुख्य मंदिर – बापणी गांव (फलौदी , जोधपुर)
- घोडे़ का नाम – किरड़ काबरा
- मेला -भाद्र कृष्ण अष्टमी को।
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