राजस्थान के सूफी संत
1 ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ति
- जन्म – संजरी (फारस), 1135 ईं.
- प्रमुख संत – चिश्ति सिलसिले के
- समकालीन शासक – पृथ्वीराज तृतीय
- गुरू – शेख उस्मान हारूनी
- कार्यस्थल – अजमेर
- दरगाह – अजमेर
- इंतकाल (मृत्यु) – 1233 ई. (अजमेर)
- अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह पर उर्स का विशाल मेला भरता है।
- यह हिन्दु-मुस्लिम सद्भावना क प्रतिक है।
2. नरहड़ के पीर
- दरगाह – नरहड़ ग्राम (चिड़ावा, झुंझुनु)
- मूल नाम – हजरत शक्कर बार पीर
- अन्य नाम – बागड़ के धणी
3. पीर फखरूद्दीन
- दरगाह – गलियाकोट (डुंगरपुर)
- सम्प्रदाय – दाउदी बोहरा सम्प्रदाय
ख्वाजा सन 1192 ई. में मुहम्मद गौरी के साथ पृथ्वीराज तृतीय के समय भारत आए और बाद में इन्होंने चिश्तियां परम्परा की नींव डाली।
इनका जन्म फारस के संजरी नामक गांव में हुआ। ये हजरत शेख उस्मान हारुनी के शिष्य थे। इन्होंने अपना खानकाह अजमेर में बनाया। इनका इंतकाल 1233 ई. में अजमेर में हुआ।
यह हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिक सद्भाव का सर्वोत्तम स्थान है।
मुहम्मद गौरी ने इन्हें ‘सुल्तान-उल-हिन्द’ (हिन्द के आध्यात्मिक गुरु) की उपाधि दी।(राजस्थान के सूफी संत)
4.शेख हमीदुद्दीन नागौरी
ये भी चिश्ती संप्रदाय के संत थे और नागौर आकर बस गये।
इल्तुतमिश द्वारा शेख-उल-इस्लाम का पद अस्वीकार कर दिया।
ये खेती से अपनी आजीविका चलाते थे।
ख्वाजा साहब ने इन्हें ‘सुल्तान-उल-तरीकीन’ की उपाधि दी।
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