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छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

Written by rkjameria

छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

करम नृत्य -छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

एक छत्तीसगढ़ का परम्परिक नृत्य है। इसे करमा देव को प्रसन्न करने के लिए नृत्य किया जाता है। यह भादो, आश्विन, कार्तिक माह तक चलता है। इसे बस्तर जिले में धूम धाम से मनाया जाता है। इस नृत्य में पारंपरिक पोषक पहनकर लोग नृत्य करते है और छत्तीसगढ़ी गीत गाते है। इसके गीत करम तैयारी के नृत्य जावा जगाने के करम स्वागत के काटने, लाने, गाड़ने तथा विजर्सन के अलग-अलग नृत्य गीत होते है। कोठा करम नृत्य में भी अधरतिया, भिनसरिया नृत्य होते हैं।

हुल्की नृत्य – छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

यह छत्तीसगढ़ का प्रमुख नाच (लोकनृत्य )में  एक है, हुल्की  पाटा घोटुल का सामूहिक मनोरंजक लोकनृत्य है! इसे अन्य सभी अवसरों पर भी किया जाता है। इसमें लडकियां व लड़के दोनों भाग लेते हैं हुल्की पाटा संसार के सभी कोनो को थोड़ा बहुत स्पर्श जरूर करता है। हुल्की पाटा मुरिया जनजाति के कल्पनाओं का गीत है।

डंडारी नृत्य – छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

यह नृत्य प्रति वर्ष होली के अवसर पर आयोजित होता है I विशेष रूप से राजा मुरिया भतरा इस नृत्य में रुचि लेते हैं । नृत्य के प्रथम दिवस में गांव के बीच एक चबूतरा बनाकर उस पर एक सेल्म स्तम्भ स्थापित किया जाता है और फिर ग्राम वासी उसके चारों ओर घुमघुम कर नृत्य करते हैं बाद में डंडारी नृत्य यात्रा कर गांव -गांव में नृत्य प्रदर्शित करते हैं। 

सुआ नृत्य – छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

यह मूलतः महिलाओ और किशोरियों का नृत्य है , इस नृत्य में महिलाएं एक टोकरी में सुआ (तोता मिट्टी का बना) को रखकर उसके चारों ओर नृत्य करती हैं और सुआ गीत गाती हैं , गोल गोल घूम कर इस नृत्य को किया जाता है। तथा हाँथ से या लकड़ी के टुकड़े से तालि बजाई जाती है और नाचते है। इस नृत्य के समापन पर शिव गौरी विवाह का आयोजन किया जाता हैं। इसे गौरी नृत्य भी कहा जाता है

ककसार नृत्य – छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य – Emitra Wala

छत्तीसगढ़ राज्य में बस्तर ज़िले मेंमेंएक जाति है अभुजम जनजाति इसके द्वारा यह नृत्य किया जाने वाला एक सुप्रसिद्ध नृत्य है। यह नृत्य फ़सल या वर्षा के देवता ‘ककसार’ को प्रसन्न करने के लिए, पूजा के उपरान्त नृत्य किया जाता है। ककसार नृत्य के साथ संगीत और घुँघरुओं की मधुर ध्वनि से एक रोमांचक वातावरण उत्पन्न होता है। इस नृत्य के माध्यम से युवक और युवतियों को अपना जीवनसाथी ढूँढने का अवसर भी प्राप्त होता है।

पंथी नृत्य – छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

यह छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। यह सतनामी पन्थियों द्वारा किया जाता है I यह नृत्य माघ पूर्णिमा के दिन ‘ जैतखम ‘ की स्थापना पर उसके चारों ओर किया जाता है। पन्थी नृत्य में गुरु घासीदास की चरित्र गाथा को बड़े ही मधुर राग में गाया जाता है I यह बड़ा ही आकर्षक नृत्य है।

गौरा नृत्य – छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

यह छत्तीसगढ़ की मड़िया जनजाति का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। नई फसल पकने के समय मड़िया जनजाति के लोग गौर नामक पशु के सिंग को कौड़ियों में सजाकर सिर पर धारण कर अत्यंत आकर्षक व प्रसन्नचित मुद्रा में नृत्य करते हैं। यह छत्तीसगढ़ की ही नही बल्कि विश्व प्रसिद्ध लोकनृत्यों में एक है।  एल्विन ने इसे देश का सर्वोत्कृष्ठ नृत्य माना हैं। 

मांदरी नृत्य  – छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

मांदरी नृत्य घोटुल का प्रमुख नृत्य है I इसमें मादर की करताल पर नृत्य किया जाता है I इसमें गीत नही गाया जाता है। पुरुष नर्तक इसमें हिस्सा लेते हैं I दूसरी तरह के मांदरी नृत्य में चिटकुल के साथ युवतियां भी हिस्सा लेती हैं।  इसमें कम से कम एक चक्कर मांदरी नृत्य अवश्य किया जाता है। मांदरी नृत्य में सामिल हर व्यक्ति कम-से-कम एक थाप के संयोजन को प्रस्तुत करता हैं , जिस पर पूरा समूह नृत्य करता है। 

सरहुल नृत्य – छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

यह छत्तीसगढ़ की उरांव जाती का प्रसिद्ध लोकनृत्य है I उरांव जाती के लोग अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए साल व्रिक्ष के चारो ओर घूम-घूम कर उत्साहपूर्वक यह नृत्य करते हैं I वस्तुतः उरांव जनजाति की मान्यता  है की इनके देवता साल के व्रिक्ष में निवास करते हैं। 

ददरिया नृत्य – छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

यह छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध प्रणय नृत्य है I यह एक गीतमय नृत्य है, जिसमें युवक गीत गाते हुए युइवतियों को आकर्षित करने के लिए नृत्य करते हैं I छत्तिसगढ़ में यह काफी लोकप्रिय है।

परधौनी नृत्य  – छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

बैगा जनजाति का यह लोकनृत्य है , जो विवाह के अवसर पर बारात के पहुंचने के साथ किया जाता है I वर पक्ष वाले उस नृत्य में हाथी बनकर नृत्य करते है।

गेंड़ी नृत्य – छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य

यह मुड़िया जनजाति का प्रिय नृत्य है , जिसमें पुरुष लकड़ी की बनी हुई ऊंची गेंडि में चढ़कर तेज गति से नृत्य करते हैं।  इस नृत्य में शारीरिक कौशल व सन्तुलन के महत्व को प्रदर्शित किया जाता है। सामान्यतः घोटुल के अंदर व बाहर इस नृत्य को किया जाता है और विशेस आनन्द के साथ किया जाता है। 

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