झारखण्ड के लोक नृत्य
झुमइर – झारखण्ड के लोक नृत्य
झुमइर नृत्य अति प्राचीन है। भीमबेटका शैलाश्रय में समूहिक नृत्य की 9000 वर्ष पुरानी चित्र लोक नृत्य झुमइर के समान है और संगीत वाद्ययंत्र मांदर के समान है।झुमइर एक सामुदायिक नृत्य है जो फसल के मौसम और त्योहारों के दौरान किया जाता है। गांव मेंं नृत्य करने का स्थान आखरा कहा जाता है। आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले पारंपरिक वाद्ययंत्र ढोल , मांदर , बंसी , नगाड़ा , ढाक और शहनाई आदि हैं।
डमकच – झारखण्ड के लोक नृत्य
डमकच भारतीय राज्यों बिहार और झारखंड का एक लोक नृत्य है। बिहार में, डोमकच नृत्य मिथिला और भोजपुर क्षेत्रों में किया जाता है। झारखंड में, यह छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में नागपुरी भाषी लोगों के द्वारा किया जाता है। दूल्हे और दुल्हन के परिवार के महिला और पुरुष सभी प्रमुख विवाह समारोहों के दौरान यह नृत्य करते हैं। वे एक-दूसरे का हाथ पकड़कर इस विशेष नृत्य को करने के लिए एक अर्ध-वृत्त बनाते हैं और गाने के बोल व्यंग्यपूर्ण और आनंद से भरे होते हैं।
करमा – झारखण्ड के लोक नृत्य
करमा झारखण्ड, बिहार, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख त्यौहार है। मुख्य रूप से यह त्यौहार भादो (लगभग सितम्बर) मास की एकादशी के दिन और कुछेक स्थानों पर उसी के आसपास मनाया जाता है। इस मौके पर लोग प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं, साथ ही बहनें अपने भाइयों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। करमा पर झारखंड के लोग ढोल और मांदर की थाप पर झूमते-गाते हैं। कर्मा को आदिवासी संस्कृति का प्रतीक भी माना जाता है
छऊ – झारखण्ड के लोक नृत्य
छऊ एक लोक नृत्य है जो बंगाल, ओड़ीसा एवम झारखंड मे प्रचलित है। इसके तीन प्रकार है- सेरैकेल्लै छऊ, मयूरभंज छऊ और पुरुलिया छऊ । छाउ नृत्य मुख्य तरीके से क्षेत्रिय त्योहारो मे प्रदर्शित किया जाता है। ज्यादातर वसंत त्योहार के चैत्र पर्व पे होता है जो तेरह दिन तक चलता है और इसमे पुरा सम्प्रदाय भाग लेता है। इस नृत्य मे सम्प्रिक प्रथा तथा नृत्य का मिश्रन है और इसमे लडाई कि तकनीक एवम पशु कि गति और चाल को चर्चित किया जाता है।
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