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1. सिक्को के अध्ययन न्यूमिसमेटिक्स कहा जाता है। भारतीय इतिहास सिंधुघाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता में सिक्को का व्यापार वस्तुविनियम पर आधारित था। भारत में सर्वप्रथम सिक्को का प्रचलन 2500 वर्ष पूर्व हुआ ये मुद्राऐं खुदाई के दोरान खण्डित अवस्था में प्राप्त हुई है। अतः इन्हें आहत मुद्राएं कहा जाता है। इन पर विशेष चिन्ह बने हुए है। अतः इन्हें पंचमार्क सिक्के भी कहते है। ये मुद्राऐं वर्गाकार, आयाताकार व वृत्ताकार रूप में है। कोटिल्य के अर्थशास्त्र में इन्हें पण/कार्षापण की संज्ञा दी गई ये अधिकांशतः चांदी धातु के थे।
2. राजस्थान के चैहान वंश ने राज्य में सर्वप्रथम अपनी मुद्राऐं जारी की। उनमें “द्रम्म” और “विशोपक” तांबे के “रूपक” चांदी के “दिनार” सोने का सिक्का था।
3. मध्य युग में अकबर ने राजस्थान में “सिक्का ए एलची” जारी किया। अकबर के आमेर से अच्छे संबंध थें अतः वहां सर्व प्रथम टकसाल खोलने की अनुमती प्रदान की गई।
राजस्थान की रियासतों ने निम्नलिखित सिक्के जारी किये
1. रियासत — वंश — सिक्के
2. आमेर — कछवाह — झाडशाही
3. मेवाड — सिसोदिया — चांदौडी (स्वर्ण)
4. मारवाड — राठौड़ — विजयशाही
5. मारवाड (गजसिंह) राठौड — राठौड़ — गदिया/फदिया
6. अंग्रेजों के समय जारी मुद्राओं में कलदार (चांदी) सर्वाधिक प्रसिद्ध है।